Aliens धरती को भेज रहे है विचित्र तरंगे ! कही ये खतरें की निशानी तो नहीं ! वैज्ञानिक हैरान
अंतरिक्ष विज्ञानियों ने हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे के मध्य से धरती की तरफ आती कुछ विचित्र रेडियो कि तरंगों को रिकॉर्ड किया है. इससे पहले ऐसी तरंगे कभी धरती की तरफ आती नहीं देखी गई थीं. लेकिन इन तरंगों ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को चौंका केर रख दिया हैं. जी हां आपको जानकर हैरानी होगी, कि ये तरंगें सिर्फ किसी एक देश की तरफ नही आ रही हैं. बल्कि ये धरती के हर कोने में आती दिखाई डे रही हैं. वैज्ञानिक ये जानकर हैरान हैं कि ये रेडियो तरंगें कहीं Aliens के द्वारा भेजा जा रहा कोई संदेश तो नहीं हैं, या फिर किसी अनजान अंतरिक्षीय वस्तु द्वारा भेजे जा रहे सिग्नल. इन बातों को लेकर वैज्ञानिक बेहद परेशान हैं. वो लगातार इन तरंगों के पीछे छिपी वजह को जानने का प्रयास कर रहे हैं.
हाल ही में हुयी नई स्टडी के प्रुमख लेखक और द यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में स्कूल ऑफ फिजिक्स के शोधाकर्ता जितेंग वांग ने बताया कि जहां से यह रेडियो सिग्नल आ रहे हैं, वो स्थान लगातार अपनी चमक को बदल रहा है और सिग्नलों को अलग-अलग तरीके से भेज रहा है. जबकि, आमतौर पर रेडियो से आने वाली तरंगें एक जैसी आती हैं. लेकिन आकाशगंगा के मध्य में मौजूद इस अनजान वस्तु से आ रही तरंगे बेहद अजीब हैं. जिसके कारण हमारे लिए उन्हें समझना बेहद मुश्किल हो रहा है.
इसके आलावा जितेंग वांग ने बताया कि ये रेडियो तरंगे काफी ज्यादा उच्च स्तर का ध्रुवीकरण हो रहा है. इसका मतलब ये है कि इन तरंगों के बीच प्रकाश एक दिशा में बह रहा है लेकिन वह प्रकाश समय के साथ अपनी दिशा को भी बदल रहा है. यह अत्यधिक अजीब घटना है. शुरुआत में तो हमें लगा कि यह कोई पल्सर है. जी हां पल्सर बेहद घने प्रकार का तेजी से घूमने वाला न्यूट्रॉन होता है. इसका मतलब हैं कि मृत तारा या तारे का प्रकार जो तेजी से सोलर फ्लेयर्स को परावर्तित करता है. लेकिन जिस जगह से ये विचित्र रेडियो तरंगें आ रही हैं, वह वैज्ञानिकों की उम्मीद के मुताबिक नहीं था.जितेंग और उनकी टीम ने आकाशगंगा के बीच मौजूद इस विचित्र अंतरिक्षीय वस्तु का नाम उसके कॉर्डिनेट्स के नाम पर रखा है. ये है- ASKAP J173608.2-321635.
सिडनी इंस्टीट्यूट फॉर एनॉमी की प्रोफेसर तारा मर्फी बताती हैं कि शुरुआत में रेडियो तरंगे भेजने वाली यह वस्तु दिख नहीं रही थी हमारे लिए ये बिलकुल अदृश्य थी. फिर धीरे-धीरे ये अपनी चमक बढ़ाने लगी. फिर धुंधली होने लगी. उस्ट्रोसके बाद वापस से दिखने लगी. यह व्यवहार बेहद डराने वाला और विचित्र है. आखिर अंतरिक्ष में ऐसा क्या है जो धरती के साथ ऐसी तरंगें भेजकर खुद को छिपा रहा है, धुंधला कर रहा है और फिर दिखा रहा है.
इस वस्तु की खोज तब जाकर हुई थी जब ऑस्ट्रेलियन स्क्वायरस किलोमीटर एरे पाथफाइंडर रेडियो टेलिस्कोप के 36 डिश एंटीना की मदद से आकाशगंगा का सर्वे किया जा रहा था. मर्चिन्सन रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑब्जरवेटरी ने पहली बार इस वस्तु से निकलने वाली तरंगों को खोजा था. जिसके बाद ASKAP के रेडियो दूरबीन उस दिशा में घुमा दिए गए. इसके बाद इन रेडियो तरंगों की जानकारी हासिल करने के लिए न्यू साउथ वेल्स में स्थित पार्क्स रेडियो टेलिस्कोप और दक्षिण अफ्रीका के रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑब्जरवेटरी मीरकैट टेलिस्कोप को उसी दिशा में घुमा दिया गया.
इसके आलावा तारा मर्फी ने बताया कि पार्क्स रेडियो टेलिस्कोप इन तरंगो को खोजने में नाकाम रहा लेकिन मीरकैट टेलिस्कोप ने हर हफ्ते इन रेडियो तरंगों को रिकॉर्ड किया. ये तरंगें हर हफ्ते सिर्फ 15 मिनट के लिए धरती पर आती रही हैं. मीरकैट ने कई हफ्तों तक इन रेडियो तरंगों को दर्ज किया. जब हमनें रेडियों तरंगों के सोर्स को खोजकर उसे समझने की कोशिश की तो हम हैरान रह गए. क्योकि वह लगातार खुद को छिपा और दिखा रहा था. अपनी चमक बढ़ा रहा था. एक ही दिन में उसने अपने कई रूपो को दिखाने की कोशिश की थी. हमनें इस तरह से ये प्रक्रिया कई हफ्तों तक रिकॉर्ड की है.
फिर पता ये चला कि इससे पहले भी, वैज्ञानिकों ने गैलेक्सी के बीच से आने वाली तरंगों को पकड़ा था. जी हां आपको जानकर हैरानी होगी की 28 अप्रैल 2020 धरती पर मौजूद दो रेडियो टेलिस्कोप ने रेडियो किरणों की तीव्र लहर को दर्ज किया. यह कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए था और अचानक गायब हो गया. लेकिन इन रेडियो तरंगो की खोज दुनिया के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण खोज थी. पहली बार धरती के इतने नजदीक फास्ट रेडियो बर्स्ट का पता चला था. ये संदेश हमारी धरती से मात्र 30 हजार प्रकाश वर्ष की दूरी से आ रहे हैं. यानी संदेश हमारी आकाशगंगा में मौजूद किसी स्थान से पैदा हो रहे हैं. इस विचित्र रेडियो सिग्नलों को द कनाडियन हाइड्रोजन इंटेंसिटी मैपिंग एक्सपेरीमेंट और द सर्वे फॉर ट्रांजिएंट एस्ट्रोनॉमिकल रेडियो एमिशन 2 ने रिकॉर्ड किया था.
वैज्ञानिकों ने इसे फास्ट रेडियो बर्स्ट का नाम FRB 200428 दिया है. यह वलपेकुला नक्षत्र से आया है. माना ऐसा भी जा रहा है कि यह एक मैग्नेटार से निकला होगा, जिसका नाम SGR 1935+2154 है. इसकी दोबारा जांच करने के लिए चीन के FAST यानी फाइव हंड्रेड मीटर अपर्चर स्फेरिकल रेडियो टेलिस्कोप की मदद ली गई थी. इसने भी विचित्र रेडियो सिग्नलों के आने की पुष्टि की.
STORY BY – UPASANA SINGH