पर्यावरण इंडेक्स में भारत 180 देशों में सबसे नीचे, अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन
दुनियाभर में पर्यावरण को लेकर एक मुहिम चलाई जा रही है और इसके संरक्षण की अपील की जा रही है। अलग-अलग देश पर्यावरण को बचाने की मुहिम चला रहे है, भारत में भी इस तरह की मुहिम चलाई जा रही है, लेकिन यह मुहिम वैश्विक स्तर पर सार्थक नजर आती नहीं दिख रही है। एक अमेरिकी संस्था ने पर्यावरणीय प्रदर्शन के आधार पर 180 देशों की एक सूची तैयार की है जिसमें भारत को सबसे नीचे रखा गया है। इस लिस्ट में डेनमार्क पहले पायदान पर है, डेनमार्क को सबसे स्थिर देश के रूप में पहचा मिली है। इसके बाद ब्रिटेन और फिनलैंड को स्थान मिला है। इन देशों को हालिया वर्षों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए सर्वाधिक अंक मिले।
भारत से ऊपर है उसके पडोसी देश
भारत से पहले नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश, सऊदी और म्यांमार जैसे देशों का नाम भी है. इसमें क्लाइमेट चेंज, बायोडाइवर्सिटी, फिशरीज, हवा की गुणवत्ता, कचरा प्रबंधन और स्वच्छ पानी, जलसंसाधन और कृषि जैसे पैमानों पर नंबर दिए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक खतरनाक एयर क्वॉलिटी के बेहद खतरनाक स्तर और ग्रीन हाउस गैसों के तेजी से बढ़ रहे उत्सर्जन के चलते पहली बार भारत को इस सूची में सबसे नीचे जगह दी गई है।
अमेरिका की भी स्थिति अच्छी नहीं
रिपोर्ट को तैयार करते समय 40 परफॉरमेंस इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 11 कैटेगरीज़ में बांटा गया है. इन इंडिकेटर्स से पता चलता है कि कोई देश पर्यावरण के लिए तय नीतिगत लक्ष्यों से अभी कितनी दूर है। क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस, एनवायरमेंटल हेल्थ और इकोसिस्टम वाइटैलिटी के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग तय की जाती है. ताजा इंडेक्स में 180 देशों में सबसे कम 18.9 का स्कोर भारत को मिला है. म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) भी पर्यावरण से जुड़े नीतिगत लक्ष्यों को हासिल करने के मामले में काफी खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल हैं। चीन भी इस इंडेक्स में 28.4 अंक हासिल करके 161 वें स्थान पर है. पश्चिम के 22 अमीर लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका 22वें स्थान पर है, जबकि पूरी लिस्ट में उसका नंबर 42वां है। रूस इस सूची में 112वें स्थान पर है।
क्या है ईपीआई
बता दें कि ईपीआई हर दो साल के बाद अपने इंडेक्स को जारी करता है। हर देश को यह उसके द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए प्रयासों के आधार पर रैंक देता है। यह रैंक मुख्य रूप से तीन मुद्दों पर आधारित होती है, पहला पारिस्थितिक तंत्र जीवन शक्ति दूसरा स्वास्थ्य और तीसरा जलवायु को लेकर नीति है। इन्ही के आधार पर देशों की रैंक निर्धारित होती है।
भारत को लेकर क्या कहा गया रिपोर्ट में
भारत की बात करें तो रिपोर्ट में कहा गया है कि उसकी 180वीं रैंक चौकाने वाली नहीं है। नीति के स्तर पर सरकार पर्यावरण से जुड़े कानून को मजबूत करने की बजाए, नए कानून बना रही है, जिससे की मौजूदा नीतियों को कमजोर किया जा सके। कोस्टल रेग्युलेशन जोन, वाइल्डलाइफ एक्ट जंगल में खनन को रोकने के लिए हैं, जोकि खतरे में है। सरकार सतत पर्यावरण को बचाने की बजाए उद्योग को आगे बढ़ा रही है। पश्चिमी घाट औद्योगिक प्रोजेक्ट्स के चलते खतरे में हैं। यहां के जीवों के लिए चिंता बेहद कम दिखाई देती है।
2050 तक के लिए क्या हैं अनुमान
इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2050 तक चीन दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें रिलीज करने वाला देश होगा, जबकि भारत इस लिहाज से दूसरे नंबर पर होगा. इन देशों की तरफ से हाल ही में प्रदूषण घटाने का वादा किया गया है, इसके बावजूद अनुमानों में भविष्य के हालात चिंताजनक नजर आ रहे हैं। सिर्फ डेनमार्क और ब्रिटेन जैसे चंद देश ही हैं जो वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस न्यूट्रलिटी की स्थिति में पहुंच सकते हैं जबकि चीन, भारत और रूस जैसे अहम देश उलटी दिशा में बढ़ रहे हैं. यानी यहां ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है।