चाँद पर बसेगीं इंसानी बस्ती! जाने पूरी जानकारी
ये बात आपको हैरान करेगी लेकिन ये सच हैं की चांद पर इतना ऑक्सीजन मौजूद हैं जिससे 800 करोड़ लोग एक लाख साल तक सांस ले सकते हैं और इस बात का दावा करने वाली एजेंसी और कोई नही बल्कि ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी और नासा हैं. इन दोनों एजेंसियों ने अक्टूबर के महीने में एक डील की थी. जिसमें इन्होने बताया कि ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी के रोवर को नासा चांद पर उतारेगा. इसके लिए वह अपने अर्टेमिस प्रोग्राम का उपयोग करेगा.
चाँद पर ऑक्सीजन को लेकर वैज्ञानिको का दावा
इसको लेकर वैज्ञानिकों का दावा है कि ये ऑक्सीजन चांद की ऊपरी सतह पर मौजूद है. ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी का मकसद हैं की वो इस ऑक्सीजन को हासिल करने के लिए अपने लूनर रोवर के जरिए चांद की सतह से पत्थर जमा करेगी और फिर उनसे सांस लेने लायक ऑक्सीजन निकलेगी. अब आप सोच रहें होंगे ये आखिर कैसे होगा. तो दोस्तों आपको बता देते हैं की इसको लेकर ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी का क्या कहना है उनका कहना हैं कि चांद की ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन गैस के रूप में नहीं है. बल्कि वो तो वह पत्थरों और परतों के नीचे दबा हुआ है. अगर हमे इंसानी बस्ती यहाँ बसानी हैं तो हमें उसकी सतह से ऑक्सीजन को निकालना होगा.
ऑक्सीजन मिल सकता हैं किसी भी रूप में
आपकों बता दें चाँद पर आपको ऑक्सीजन किसी भी रूप मिल सकता हैं. हो सकता हैं की किसी खनिज, सख्त पत्थर, छोटी बजरी, धूल, कंकड़, रेत के रूप में भी आपको आक्सीजन मिल जाये. जानकारी के अनुसार चांद की पूरी सतह पर वैसे तो पत्थर और मिट्टी ही है जैसा की आप धरती पर देखते हैं. इन्ही सबमें भारी मात्रा में आपको ऑक्सीजन मिलेगा. चांद की सतह पर हर क्यूबिक मीटर में 1.4 टन खनिज है. इन खनिजों में 630 किलोग्राम ऑक्सीजन है. नासा का कहना है कि एक इंसान को दिन भर में जिंदा रहने के लिए सिर्फ 800 ग्राम ऑक्सीजन की जरूरत होती है. अगर किसी एक क्यूबिक मीटर से 630 किलोग्राम ऑक्सीजन निकलता है तो एक इंसान आराम से दो साल या उससे ज्यादा समय चांद पर जीवित रह सकता है. दोस्तों चाँद की सतह पर सबसे ज्यादा सिलिका, एल्यूमिनियम, आयरन और मैग्नीसियम ऑक्साइड हैं. ये तो सब जानते हैं की धरती की मिट्टी में जीवन है जबकि चांद की मिट्टी में 100% अनछुआ खनिज अलग अलग रूपों में मौजूद है.
चाँद पर क्यों मिलता हैं ऐसे ऑक्सीजन
अब आप सोच रहे होंगे की चाँद पर इस स्थिति में ही खनिज और आक्सीजन क्यों मिलता हैं तो आपकी इस दुविदा का भी हम हल कर देते हैं. दरअसल चाँद पर ये हालत इसलिए हुई है क्योंकि चांद की सतह पर अक्सर उल्कापिंडों और एस्टेरॉयड्स की बारिश होती है. जिसकी टक्कर के कारण चांद पर मौजूद पत्थर और खनिज टूट जाते हैं. चांद की मिट्टी को कुछ लोग लूनर सॉयल भी कहते हैं. जो कि धरती की मिट्टी से बहुत अलग होती है. धरती कि मिट्टी में हजारों प्रकार के सूक्ष्म जीवों का निवास होता है. लेकिन चांद की मिट्टी में खनिज और ऑक्सीजन का मिश्रण. यानी किसी पत्थर को अगर आप बारीकी से देखेंगे तो आपको उसमें छोटे-छोटे छेद दिखायी देंगे. जिसके अंदर ऑक्सीजन बुलबुले के रूप में भरा होता है. अगर इन्हें निकाल कर उपयोग में लाया जाए तो इसमें क्या ही बुरी बात होगी.
दोस्तों हमने अभीतक आपको ये बताया हैं की चाँद पर ऑक्सीजन आपको कैसे और किसमें मिलेगा लेकिन अब सवाल ये हैं की आप उसे जीने के लिए कैसे उपयोग करेंगे.
ऑक्सीजन को उपयोग में कैसे लायें
जानकारी के मुताबिक अगर हम किसी पत्थर को तोड़ेंगे तो उसमें से दो चीजें आपको मिलेंगी. पहला हैं ऑक्सीजन और दूसरा खनिज होगा. हर रीगोलिथ में करीब 45 फीसदी ऑक्सीजन होगा. लेकिन इस ऑक्सीजन को निकालने के लिए हमें काफी भारी और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करना पड़ेगा. ताकि ऑक्सीजन का नुकसान न हो. धरती पर इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया से एल्यूमिनियम बनाया जाता है. तरल एल्यूमिनियम ऑक्साइड यानी एल्यूमिना के बीच से इलेक्ट्रिक करेंट बहाया जाता है. इससे एल्यूमिनियम और ऑक्सीजन अलग-अलग हो जाते हैं. यहां पर ऑक्सीजन बाई-प्रोडक्ट के रूप में बाहर आता है. लेकिन चांद पर यह मुख्य प्रोडक्ट होगा. जबकि खनिज बाई-प्रोडक्ट होंगे. चांद पर इस तरह की रसायनिक प्रक्रिया को बड़े पैमाने पर करने के लिए काफी ज्यादा ऊर्जा और तकनीक की जरूरत होगी. जिससे इसे टिकाऊ बनाने की कोशिश की जाएगी.
बेल्जियम की एक स्टार्टअप स्पेस एप्लीकेशन सर्विस कंपनी ने कहा था कि उसके बाद तीन एक्सपेरीमेंटल रिएक्टर्स हैं जो इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया को सुधार कर बेहतर और ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने की क्षमता रखते हैं. उन्हें उम्मीद है कि वो साल 2025 तक इस तकनीक को चांद पर भेजने में सफल हो जाएंगे.