

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं और इस बार करवा चौथ का त्योहार 1 नवंबर को मनाया जाएगा। आपको बता दे, इस दिन सुहागिन महिलाएं श्री गणेशजी और चंद्रमा के साथ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय की पूजा करती हैं और करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है -'करवा' यानि 'मिट्टी का बर्तन' और 'चौथ' यानि 'गणेश जी की प्रिय तिथि चतुर्थी'। आपने अक्सर देखा होगा कि करवा चौथ में पूजा के दौरान छलनी, सींक, करवा और दीपक का इस्तेमाल होता है। क्या आप करवाचौथ की पूजा में प्रयुक्त होने वाली पूजा सामग्री के प्रतीकात्मक महत्व के बारे में जानते हैं? आइए जानते हैं क्या है इनका महत्व.
कलश और थाली का प्रतीकात्मक महत्व
करवाचौथ की पूजा में मिट्टी या तांबे के कलश से चन्द्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है. पुराणों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश में सभी ग्रह-नक्षत्रों और तीर्थ का निवास होता है. इतना ही नहीं ये भी कहा जाता है कि कलश में ब्रह्मा,विष्णु,महेश, सभी नदियों,सागरों,सरोवरों एवं तेतीस कोटि देवी-देवता भी विराजते हैं। पूजा की थाली में रोली,चावल,दीपक, फल,फूल,पताशा,सुहाग का सामान और जल से भरा कलश रखा जाता है. करवा के ऊपर मिटटी के बड़े दीपक में जौ या गेहूं रखे जाते हैं. जौ समृद्धि,शांति,उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं।
दीपक और छलनी का प्रतीकात्मक महत्व
दीये की रोशनी का करवा चौथ में विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर सूर्य का बदल हुआ रूप अग्नि माना जाता है। मन जाता है कि अग्नि को साक्षी मानकर की गई पूजा सफल होती है। दूसरी ओर से देखें तो प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक भी कहा जाता है। ज्ञान प्राप्त होने से नम से अज्ञानता रूपी सभी विकार दूर होते हैं। दीपक नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर भगाता है। छलनी की बात करें तो ज्यादातर महिलाएं दिन के अंत में पहले छलनी से चंद्रमा को देखकर और फिर तुरंत अपने पति को देखकर अपना व्रत खोलती हैं. करवा चौथ में सुनाई जानेवाली वीरवती की कथा से जुड़ा हुआ है. बहन वीरवती को भूखा देख उसके भाइयों ने चांद निकलने से पहले एक पेड़ की आड़ में छलनी में दीप रखकर चांद बनाया और बहन का व्रत खुलवाया.
करवा का प्रतीकात्मक महत्व
करवा का अर्थ है 'करवा' यानी मिट्टी का बर्तन जिसे भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है। भगवान गणेश जल तत्व के कारक हैं और करवा में लगी नली(टोंटी) भगवान गणेश की सूंड का प्रतीक है। इस दिन मिट्टी के करवा में जल भरकर पूजा में रखना शुभ माना जाता है।