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जैव आक्रमण इकोसिस्टम के लिए है खतरा

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जैव आक्रमण इकोसिस्टम के लिए है खतरा

जैव विविधता और इकोसिस्टम के सामने आक्रमणकारी प्रजातियों का प्रसार मौजूद पांच बड़े खतरों में से एक है। कुछ जानवर, पौधे, कवक और सूक्ष्म जीव जो कि खुद को अपने प्राकृतिक आवास के बाहर ऐसी जगह पर खुद को विकसित कर लेते हैं जहां वे स्थानीय जैव विविधता पर नकारात्मक असर डालते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं, लेकिन उनके बारे में उतनी चर्चा नहीं होती है जितनी कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, समुद्र और जमीन के लैंड यूज में बदलाव जैसी चीजों पर होती है।


आपको बता दें कि इंटरगवर्नमेंटल प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड ईकोसिस्टम सर्विसेज की हाल के रिपोर्ट में आक्रमणकारी बाहरी प्रजातियों के वैश्विक खतरे को रेखांकित किया गया है। यह रिपोर्ट कई मानवजनित गतिविधियों ने दुनियाभर के क्षेत्रों और बायोम में 3700 से ज्यादा बाहरी आक्रमणकारी प्रजातियों को पैदा कर दिया है और हर साल इस तरह की 200 प्रजातियां और बढ़ती जा रही हैं, इन सब के बारे में यह रिपोर्ट विस्तार से बताती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी प्रजातियों में 3500 से ज्यादा हानिकारिक प्रजातियां हैं, जिनका प्रकृति और मनुष्यों के जीवन पर बुरा असर पड़ता है। 2300 से ज्यादा बाहरी प्रजातियां दुनियाभर के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जमीनों पर पाई गई हैं। लुप्त होने वाली प्रजातियों में से लगभग 60 प्रतिशत ऐसी हैं जिनके लिए ये आक्रमणकारी बाहरी प्रजातियां या तो अकेले या फिर अन्य कारकों के साथ संयुक्त तौर पर जिम्मेदार हैं।


आपको बता दें कि IPBES एक स्वतंत्र संस्था है जिसमें 143 देश शामिल हैं, यह संस्था जैव विविधिता के सतत प्रबंध के लिए काम करती है। इन देशों के प्रतिनिधियों की ओर से तैयार की गई इस मूल्यांकन रिपोर्ट का कहना है कि वैश्विक स्तर पर इन बाहरी आक्रमणकारी प्रजातियों की वजह से प्रकृति और इंसानों को होने वाले नुकसान को आंकें तो यह 2019 में ही 423 बिलियन डॉलर यानी लगभग 8287 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। 1970 से यह नुकसान हर दशक में लगभग चौगुना होता गया है। वहीं अगर भारत की बात करें तो अनुमान है कि भारत में पिछले 60 सालों में बाहरी प्रजातियों से भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 2413 करोड़ का नुकसान हुआ है। पिछले 16 सालों में पूरे भारत में बाहरी आक्रमणकारी पौधों की मॉनिटरिंग से पता चला है कि एक बार के लिए इन पौधों को नियंत्रित करने के लिए कम से कम 260 करोड़ रुपयों की जरूरत होगी और फिर भी इसके नतीजे भी कुछ निश्चित नहीं हैं।