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भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल में बंद क्यों किये जाते हैं, पर्यावरण की दृष्टि से यह कितना जरूरी है

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भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल में बंद क्यों किये जाते हैं, पर्यावरण की दृष्टि से यह कितना जरूरी है

विश्व प्रसिद्ध तीर्थ धाम भगवान केदारनाथ के कपाट बुधवार को विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए जायेंगे और इसके बाद शीतकालीन गड्डिस्थल ओंकारश्वर मंदिर मे ही भगवान की पूजा अर्चना होगी, लेकिन सवाल यह होता है कि यह मंदिर शीतकाल में आखिर बंद क्यों किया जाता है।

पर्यावरणविदों का मानना है कि शीतकाल में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है। जब तापमान शून्य डिग्री से नीचे की ओर जाने लगती है तो वहां मानव के लिए रहना उचित नहीं है और मानव अगर वहां आते-जाते हैं तो अपने शरीर को गर्म रखने के लिए आग जलाएगें, जिससे बर्फ पिघलेगी और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हो जाएगा। हालांकि कपाट को बंद करने के पीछे दैवीय घटना का उल्लेख किया जाता है। फिलहाल कपाट बन्द को लेकर मंदिर समिति ने सभी तैयारियां पूरी कर ली है। 

 हमेशा भैय्यादूज के पावन पर्व पर भगवान केदारनाथ के कपाट बंद होते है औऱ इस बार भी बुधवार को भैयादूज और सुबह छ बजे गर्भ गृह और साढ़े आठ बजे मंदिर का मुख्य द्वार बन्द कर दिया जायेगा। चार बजे से छह बजे तक हवन, पूजा अर्चना कपाट बन्द करने की सभी विधियां संपन्न होंगी। कपाट बन्द होने के बाद बाबा केदार की डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर के लिए रवाना होगी।