देश के इन हिस्सों में हर साल क्यों आती है बाढ़ ? जानिये इसके पीछे की वजह
साल 2020 में भारत में एक तरफ जहां कोरोना महामारी ने तबाही मचाई तो वहीं दूसरी ओर बाढ़ ने आम लोगों के संकट को और भी बढ़ा दिया. एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक भारत में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाओं में बाढ़ सबसे अधिक तबाही का कारण है. देश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान में बाढ़ की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है. अनियमित मॉनसून पैटर्न और कुछ हिस्सों में कम और कहीं ज्यादा बारिश इस तबाही को कुछ क्षेत्रों में और बढ़ा देते है.
एक अनुमान के मुताबिक बाढ़ के कारण भारत में पिछले 6 दशकों में करीब 4.7 लाख करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ है. यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं के कारण 2030 तक दुनिया में करोड़ों और लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे.
चिंता की बात है कि विश्वभर में बाढ़ के कारण होने वाली मौतों का पांचवां हिस्सा भारत में ही होता है और बाढ़ की वजह से हर साल देश को हजारों करोड़ का नुकसान होता है.
ये एक सच है कि जो नदियां अपने आसपास के इलाकों में खुशहाली का कारण होती हैं वही अपने आसपास के इलाकों में तबाही का कारण भी बनती हैं. उदाहरण के तौर पर बिहार और असम को ही ले लिजीए. बिहार जो हरा भरा माना जाता है वही यहां के उत्तर बिहार का 73.63 हिस्सा हर साल बाढ़ के खतरे का सामना करता है. राज्य के 38 जिलों में से 28 जिले बाढ़ के खतरे वाले माने जाते हैं. यहां साल भर में जो कुछ भी होता है बाढ़ उसे तबाह कर अपने साथ बहा ले जाता है. इन इलाकों के आर्थिक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण बाढ़ भी माना जाता है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ बिहार में ही भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% और भारत की बाढ़ प्रभावित आबादी का 22.1% है. पिछले साल बिहार के 17 जिलों में बाढ़ आई थी. इससे करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. वही 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी.
बिहार में हर साल बाढ़ आने के पीछे वजह है नेपाल से आने वाली कोसी-गंडक जैसी नदियां जो प्रदेश में हर साल भीषण तबाही मचाती है. यहां लाखों की तादाद में लोग बेघर हो जाते हैं, सैंकड़ों लोग बाढ़ की वजह से मौत के मुंह में समा जाते है तो खेती-फसलों को भी काफी बड़ा नुकसान होता है.
ऐसे ही कोसी नदी को बिहार का अभिशाप नहीं कहा जाता है. प्रत्येक वर्ष कोसी से लगते कई जिलों में भीषण बाढ़ आती है और सबकुछ तबाह कर जाती है. ये नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से दाखिल होती है. इसके भौगोलिक स्वरूप को देखें तो पता चलेगा कि ये बीते 250 सालों में 120 किमी का विस्तार कर चुकी है.
वही नेपाल से आने वाली नदियों में गंडक और बूढ़ी गंडक भी शामिल है जिसके पानी में उफान आने की वजह से हर साल बिहार के कई जिले बाढ़ से प्रभावित हो जाते है. इतना ही नहीं नेपाल से ही निकलने वाली बागमती नदी भी उत्तर बिहार के कई जिलों में बाढ़ का कारण बनती है. बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर है. इसकी सहायक नदियां हैं- विष्णुमति, लखनदेई, लाल बकेया, चकनाहा, जमुने, सिपरीधार, छोटी बागमती और कोला नदी.
अगर वही बात राज्य असम की करे तो यहां हर साल बाढ़ का आना तय है. साल कोई भी हो लेकिन हर साल असम में बाढ़ तबाही मचाती है. हर साल हजारों लोग मारे जाते हैं. हर साल हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है. यहां लोग अपना घर-बार छोड़कर जहां-तहां शरण लेने को मजबूर हो जाते है.यहाँ सिर्फ जान का खतरा इंसानों को नही है बल्कि बाढ़ यहाँ के जानवरों के लिए भी खतरनाक साबित होता है. 2020 में आई बाढ़ से तो यहां के कांजीरंगा पार्क का करीब 90 फीसदी हिस्सा डूब गया. इतना ही नहीं बाढ़ के पानी की वजह से यहां सौ से भी ज्यादा जानवरों की मौत हो गई. इन जानवरों में दुर्लभ प्रकार के जीव भी शामिल है. लेकिन ये बाढ़ क्यों आती है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है, ये एक बड़ा सवाल है.
असम में बाढ़ के कारण को समझने के लिए यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को समझना होगा. बता दें कि असम का उत्तरी हिस्सा भूटान और अरुणाचल प्रदेश से लगा हुआ है. दोनों ही पहाड़ी इलाके हैं. पूर्वी हिस्सा नागालैंड से मिलता है.वही पश्चिमी हिस्सा पश्चिम बंगाल और बांग्लादश से मिलता है और असम का दक्षिणी हिस्सा त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम से मिलता है.ऐसे में असम में तिब्बत से निकलने वाली कई नदियां वाया अरुणाचल प्रदेश आती हैं जो बाढ़ लाती हैं.
इस बाढ़ के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ब्रह्मपुत्र नदी है. चीन से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की नौंवी सबसे लंबी नदी है. असम ही नहीं, ब्रह्मपुत्र का कहर अरुणाचल प्रदेश और बांग्लादेश के कई इलाकों में भी पड़ता है. ब्रह्मपुत्र नदी ही प्रत्येक साल असम में तबाही का कारण बनती हैं. इसकी छोटी-बड़ी कुल 35 सहायक नदियां हैं. अरुणाचल प्रदेश से जब ये नदियां असम में प्रवेश करती हैं तो पहाड़ी इलाके से सीधे मैदानी इलाके में आ जाती हैं, यही वजह होता है कि तबाही ज्यादा होती है.
माना कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह नहीं रोका जा सकता, किंतु उच्च स्तर की तकनीक और बेहतर कोशिशों से इसके प्रभावों को कम जरूर किया जा सकता है. ऐसे में इन राज्यों को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए नदियों की सफाई, पुराने बांध और तटबंधों की सफाई, इनकी मरम्त करना और नए बांधों का निर्माण करना जरूरी है. लेकिन हर साल बाढ़ की आशंका वाले राज्य की सरकार भी इन आपदा से निपटने के लिए ऐसी तैयारियां नहीं करते, जिनसे लोगों को उफनती नदियों के प्रकोप से काफी हद तक बचाया जा सके.
असम और बिहार जैसे राज्य ऐसे है जहां बाढ़ एक सालाना त्रासदी है, लेकिन कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी हैं, जो हाल के वर्षों में भीषण बारिश और बाढ़ के हालात से रूबरू हो रहे हैं.
ऐसे में बाढ़ जैसी आपदाओं के चलते जान-माल के नुकसान के साथ-साथ लाखों हेक्टेयर इलाकों में फसलों के बर्बाद होने से देश की अर्थव्यवस्था पर इतना बुरा प्रभाव पड़ता है कि उस राज्य का विकास सालों पीछे दूर चला जाता है. बहरहाल, यदि हम चाहते हैं कि देश में हर साल ऐसी आपदाएं भारी तबाही नहीं मचाएं तो हमें भयावह प्रकृति के रूप को शांत करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने होंगे. इसके लिए सबसे पहले जरूरी है प्रकृति के अलग-अलग रूपों जैसे जंगल, पहाड़, वृक्ष, नदी, झीलों इत्यादि की एहयमियत को समझे और इसे संरक्षित करने में अपना योगदान दें.