हर साल मानसून में क्यों डूब जाती है मुंबई,जानें बड़े कारण
एक और मॉनसून, और मुंबई एक बार फिर पानी में डूब गई. क्या आपने कभी सोचा है कि देश की आर्थिक राजधानी हर साल मॉनसून में क्यों डूब जाती है. हर साल ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे कई वजहें हैं? तो चलिए जानते हैं हर साल बारिश में मुंबई के डूबने के पीछे की बड़ी वजह क्या है…
भौगौलिक कारण
सबसे पहली बात कि मॉनसून भौगौलिक तौर पर महाराष्ट्र के तटवर्ती कोंकण इलाके में आता है. इस इलाके में महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों से ज्यादा ही बारिश हर साल होती है. मुंबई में हर साल औसत 2514 मिलीमीटर बारिश होती है.
मुंबई में ड्रेनेज की समस्या
-मुंबई में ड्रेनेज सिस्टम बरसों पुराना है. इसे पूरी तरह से बदला नहीं गया है. कई जगहों पर मरम्मत हुई है लेकिन वो काफी नहीं है. जिस गति से ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने के लिए काम होना चाहिए, वो नहीं हो रहा.
हाई टाईड
मुंबई अरब सागर के किनारे बसी है, इसलिये इसमें समंदर भी अपनी भूमिका निभाता है. वैसे तो समंदर में रोजाना ज्वार और भाटा आता है. लेकिन जब ज्वार यानी कि हाई टाईड साढे 4 मीटर से ऊपर की हो तो वो मुंबई के लिए मुसीबत का संकेत है. हाई टाईड की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ जाता है और बारिश का पानी शहर से बाहर नहीं निकल पाता और उलटा समुद्र का पानी शहर में घुसता है. जिससे शहर के निचले इलाकों में पानी जमा हो जाता है और बाढ़ जैसे हालात हो जाते है.
कुदरत के साथ खिलवाड़-
मुंबई के बाढ़ग्रस्त होने का एक कारण है मीठी नदी. शहर के बीचों बीच से एक नदी होकर गुजरती है जिसका नाम है मीठी. ये नदी मुंबई के पवई और विहार तालाब से निकलती है और माहिम में जाकर अरब सागर से मिल जाती है. तट के दोनों ओर अतिक्रमण होने के कारण नदी का प्रवाह काफी संकरा हो गया है. प्रदूषण और कचरे ने भी नदी की गहराई कम कर दी है. नदी ने नाले की शक्ल ले ली है. भारी बारिश होने पर इस नदी में बाढ़ आ जाती है और पानी आसपास के एक बड़े इलाके को अपनी चपेट में ले लेता है.
भ्रष्टाचार
देश की सबसे अमीर महानगपालिका माने जाने वाले जिसका हज़ारों करोड़ रुपय का बजट है, फिर भी वह मुंबई को डूबने से बचा नहीं पाती है. हर साल बीएमसी बजट का करीब 3 फीसदी हिस्सा स्ट्रोम वाटर निकासी के लिये होता है. 900 करोड रूपये के आसपास बीएमसी इस खर्च के लिये रखती है कि बारिश में शहर न डूबे. लेकिन शहर फिर भी डूबता है. इसके पीछे कही ना कही कारण भ्रष्टाचार भी है. भ्रष्टाचार की वजह से ये रकम भी बारिश के पानी की तरह बह जाती है. साल 2017 में CAG ने अपनी रिपोर्ट में वित्तीय लेनदेन के दौरान गडबड़ी का आरोप लगाया. आरोप ये लगा कि मुंबई महानगरापालिका की ओर से सीवेज मैनेजमेंट के ठेकदारों को गैरकानूनी तरीके से फायदा पहुंचाया गया.
इन सब के अलावा भी बहुत कारण है जैसे- नालियों की नियमित रूप से सफाई नहीं होती है. नालियों से कूड़ा बाहर निकाला भी जाता है तो तुरंत उसे ठिकाने नहीं लगाया जाता. बारिश में बहकर वो फिर नालियों में चला जाता है. नालियां जाम हो जाती हैं.
बता दें कि शहर से इकट्ठा हुए कुल कूड़े में 10 फीसदी प्लास्टिक होता है. हर दिन करीब 650 मिट्रिक टन कूड़ा निकलता है. प्लास्टिक की थैलियां और बोतल की वजह से नालियां जाम होती हैं. प्लास्टिक के अलावा कंस्ट्रक्शन मैटेरियल और थर्मोकोल की वजह से भी समस्या पैदा होती है. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिर्फ मानसून से पहले ही होता है लेकिन इसे रूटीन के तौर पर किया जाना चाहिए. लेकिन मानसून खत्म होते ही इस तरफ ध्यान नहीं दिया जाता. मुंबई वालों की भी जिम्मेदारी बनती है कि कूड़ा कहीं भी ने फेंके.